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Friday 29 November 2019

Basics of fundamental analysis- फंडामेंटल एनालिसिस क्या होता है

Basics of fundamental analysis- फंडामेंटल एनालिसिस क्या होता है

फंडामेंटलएनालिसिस (fundamental analysis) या मौलिक विश्लेषण किसी स्टॉक या कंपनी की स्थिति को वित्तीय स्तर पर जांच करने की प्रक्रिया है। इस प्रकार के  विश्लेषण में किसी कंपनी के हिस्टॉरिकल डेटा के आधार पर उसके वित्तीय स्वास्थ्य का निर्धारण किया जाता है। 

   फंडामेंटल एनालिसिस में किसी कंपनी और उसके बिज़नेस से जुड़े अलग अलग फैक्ट्स के बारे अध्ययन करना होता है। 

    फंडामेंटल एनालिसिस से आपको यह भी पता चल सकता है कि किसी कंपनी के शेयर का मूल्य क्या होना चाहिए। यह राजस्व, परिसंपत्ति प्रबंधन और कंपनी के उत्पादन के साथ भविष्य में उसके ग्रोथ की संभावनाओं का आकलन करता है।

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    किसी स्टॉक में लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए हमें कंपनी के फंडामेंटल एनालिसिस पर ज्यादा ध्यान देना होता है, जिससे भविष्य में हमें अच्छा लाभ मिल सके। जब आप शेयर मार्केट में निवेश करने का सोचते हैं तो आप सुनते हैं कि यहां लिस्टेड हजारों स्टॉक्स में से अच्छे स्टॉक का चुनाव अपने निवेश के लिए करें। 

  यहां अच्छे स्टॉक से तात्पर्य फ़ण्डामेंटली स्ट्रांग कंपनी से होता है और इसके लिए हमें फंडामेंटल एनालिसिस के बेसिक्स को समझना जरूरी है।  

फंडामेंटल एनालिसिस के प्रमुख तत्व (Important component of fundamental analysis) -


किसी स्टॉक के रिजल्ट की समीक्षा में किसी बिज़नेस चैनल या समाचार पत्र में बहुत से शब्दों की चर्चा होती है जैसे- ऑपरेटिंग प्रॉफिट, कंपनी के debt,  EPS, P/E  Ratio, बुक वैल्यू आदि।  आइये जानते है इन शब्दों का अर्थ क्या है और किसी स्टॉक का फंडामेंटल एनालिसिस करते समय इसे कैसे काम में लिया जाता है। 

1. बिक्री (sell) का आंकड़ा -

फंडामेंटल एनालिसिस के लिए कंपनी के सेल के आंकड़ों पर ध्यान देना आवश्यक है। हमें देखना होगा कि कंपनी की बाजार में हिस्सेदारी कितनी बढ़ी है और इस प्रकार कंपनी अपना लाभ कितना बढ़ाने में कामयाब हुई है। कंपनी के बिक्री (सेल) के आंकड़ों का विश्लेषण, कंपनी के भविष्य के प्रदर्शन का अनुमान लगाने में भी मदद करता है। 

   कंपनी के सेल के फिगर से उसकी मार्केटिंग रणनीति का पता चलता है। यदि किसी कंपनी की बिक्री पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ रही है, तो यह माना जा सकता है कि अगले वर्ष भी यह प्रवृत्ति जारी रहेगी और उसकी मार्केटिंग रणनीति बेहतर तरीके से काम कर रही है। 

 इस दृष्टिकोण से टोटल बिक्री का आंकड़ा कंपनी की मौजूदा ग्रोथ और उसके वित्तीय स्वास्थ्य को जानने का एक महत्वपूर्ण उपाय है। इससे कंपनी के परिचालन लाभ और शुद्ध लाभ जैसे दूसरे  महत्वपूर्ण मापदंडों की गणना की शुरुवात होती है। 
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2. परिचालन लाभ (operating profit) -

फंडामेंटल एनालिसिस में कंपनी की ऑपरेटिंग प्रॉफिट या परिचालन आय को देखकर उसके परिचालन और प्रबंधकीय दक्षता का स्पष्ट संकेत मिल जाता है। इसके लिए सेल के आंकड़ों से लागत और दिन-प्रतिदिन के परिचालन खर्चों जैसे कि कर्मचारी, किराया, बिजली, परिवहन आदि को घटाकर कंपनी के पास बची हुई राशि को देखा जाता है। 


 यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शेयरधारकों को मिलने वाला लाभ या डिविडेंट कंपनी के बढ़िया संचालन पर निर्भर होता है। यदि आप किसी कंपनी में लम्बे समय के लिए निवेश करना चाहते हैं तो इस फिगर को बारीकी से देखना चाहिए क्योंकि यह कंपनी के उत्पादों की कुशलतापूर्वक निर्माण और उसकी बिक्री में दक्षता को दर्शाता है। 

  कुशल मैनेजमेंट होने पर प्लांट में मशीनों की खराबी या किसी दुर्घटना के कारण उत्पादन अधिक समय तक बाधित नहीं होता इसके विपरीत ढीला मैनेजमेंट होने पर उत्पादन अधिक समय तक ठप्प होने से कंपनी को नुकसान होता है। 

    ऑपरेटिंग प्रॉफिट का अच्छा फिगर यह दर्शाता है कि कंपनी अपने बिज़नेस के संचालन में कुशल है और इसके शेयर में निवेश करना लाभदायक हो सकता है।

3. कंपनी के ऋण (debt) को देखें -

फंडामेंटल एनालिसिस के लिए कंपनी के ऋण (debt) के आंकड़ों को गौर करें। भारी भरकम क़र्ज़ वाली कंपनी की तुलना में कम क़र्ज़ वाली या लगभग डेब्ट फ्री कंपनी बेहतर होगी। लगातार बढ़ते भारी क़र्ज़ होने पर कंपनी की आय का बड़ा हिस्सा उस क़र्ज़ का ब्याज चुकाने में ही व्यय हो जायेगा। 

   आगे चलकर ऐसी कंपनी के क़र्ज़ के बोझ तले दबकर घाटे में जाने की आशंका बन जाती है।निवेशकों को एक ही सेक्टर की कंपनियों की तुलना के लिए इस आंकड़े का उपयोग करना चाहिए। 
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4. कंपनी का शुद्ध लाभ (Net Profit) -

शुद्ध लाभ वह है जो कंपनी को प्राप्त कुल राजस्व से कुल खर्च को घटाने के बाद बचता है। यह दिखाता है कि कंपनी ने एक निश्चित अवधि में कितना कमाया है या लॉस में रही है। 

   शुद्ध लाभ सबसे महत्वपूर्ण फिगर में से एक है, विश्लेषक और निवेशक शुद्ध लाभ को करीब से देखते हैं क्योंकि यह सीधे शेयर की कीमत से संबंधित है। 

   लगातार बढ़ते नेट प्रॉफिट के साथ स्टॉक के शेयर भाव में वृद्धि होती है। इसके विपरीत, यदि कोई कंपनी शुद्ध लाभ में लगातार कमी दर्शा रही है, या घाटे की स्थति से गुजर रही है, तो समय के साथ उसके शेयर की कीमत में कमी देखने को मिलेगी। निवेशकों को हमेशा शुद्ध लाभ बढ़ाने वाली कंपनी ही निवेश के लिए देखना चाहिए। 

5. EPS (Earnings per share)-

earning per share का अर्थ है -कंपनी के प्रॉफिट को उसके द्वारा इशू और ट्रेड किये जाने वाले शेयर की संख्या के नजरिये से जांचना अर्थात प्रति शेयर कमाई को देखना। 

  यदि किसी कंपनी के एक वर्ष में अर्जित लाभ को शेयरधारकों को वितरित कर दिया जाता है अर्थात प्रॉफिट को शेयर्स की संख्या से डिवाइड कर दिया जाता है तो हमें अर्निंग प्रति शेयर (EPS) प्राप्त हो जायेगा। Earnings per share = Profit /Outstanding share.

  EPS का अधिक होना अच्छा होता है क्योंकि यह दर्शाता है कि कंपनी तुलनात्मक रूप से अधिक लाभदायक है और कंपनी के पास अपने शेयरधारकों को वितरित करने के लिए अधिक आय है। 

   लंबी अवधि के निवेशकों को पिछले कई वर्षों के EPS आंकड़ों का विश्लेषण करना चाहिए साथ ही उसी सेक्टर के दूसरे स्टॉक के EPS आंकड़े के साथ इसकी तुलना करने के बाद ही निवेश का निर्णय लेना चाहिए। 

   निवेशकों को ऐसी कंपनियों का चुनाव करना चाहिए, जिनके EPS में साल दर साल लगातार सुधार हो रहा हो।  क्योंकि इससे कंपनी की वित्तीय स्थिरता और बेहतर कमाई शक्ति (profitability) का संकेत मिलता है।

6. P/E RATIO  (Price to Equity Ratio) -

फंडामेंटल एनालिसिस के  जरिये किसी स्टॉक का चयन निवेश के लिए करने से पहले P/E रेश्यो को बहुत अधिक देखा जाता है।P/E रेश्यो में P का अर्थ स्टॉक के करेंट मार्केट Price से है और E का मतलब Earning per share से है। 

 अर्थात जब स्टॉक के करेंट मार्केट प्राइस को Earning per share से डिवाइड किया जाता है तो हमें P/E Ratio प्राप्त होता है। 

PE ratio = current market price/ earning per share

   इससे हमें पता चलता है कि शेयर का भाव कितना सस्ता है या मंहगा है। किसी स्टॉक का P/E अधिक होने का मतलब अपने करेंट प्राइस में वह महंगा (expensive) है और उसका प्राइस बढ़ने के चांस कम हैं इसके विपरीत कम  P/E होने पर उसमें निवेश किया जा सकता है। 

   अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले P/E को उसी सेक्टर की अन्य कंपनियों से कम्पेयर करके देखा जाता है। सामान्यतः bear market में P/E कम होता है और  bull market में PE ज्यादा होता है। जैसे निफ़्टी -50 के लिए P/E रेश्यो 15 से 20 तक अच्छा समझा जाता है। परन्तु नवंबर 19 में निफ़्टी अपने हाई के पास है और इसका  P/E, 28 के आसपास चल रहा है।  

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7. लाभांश (dividend income) -

कंपनियां सभी खर्चों का भुगतान करने के बाद अपने अर्जित मुनाफे में से प्रति शेयर लाभांश घोषित करती हैं। किसी कंपनी के शेयर्स में निवेश करने वाले निवेशक दो तरह के रिटर्न चाहते हैं। पहला है कंपनी के शेयर की प्राइस बड़े यानि कैपिटल एप्रिसिएशन हो और दूसरा है कंपनी द्वारा घोषित डिविडेंड इनकम। 

   अच्छा डिविडेंट देने वाली कंपनियां, निवेशकों के लिए अच्छे निवेश विकल्प हैं क्योंकि इससे उन्हें शेयर प्राइस बढ़ने के अवसर के साथ नियमित आय भी होती है। इसके लिए कंपनी के पिछले कुछ वर्षों में दिए गए डिविडेंट का रिकॉर्ड चेक करना चाहिए कि उसमें वृद्धि या कमी किस प्रकार से देखी जा रही है। 

8. प्रति शेयर बुक वैल्यू (Price to book value) -

किसी शेयर का लेनदेन जिस भाव पर होता है उसे बाजार मूल्य (Market Price) कहा जाता है। इसके अलावा फंडामेंटल एनालिसिस के लिए उसकी बुक वैल्यू भी देखी जाती है। बुक वैल्यू निकालने के लिए कंपनी की बैलेंस शीट देखी जाती है। इसे निकालने के लिए कंपनी के एसेट में से उसकी ऋण संबंधी देनदारियों को घटाया जाता है।  

    Book value asset – liability 

  कंपनी के asset में  land, building, plant, machinery आते हैं और liability का अर्थ है Company के all type of loans. बुक वैल्यू वह राशि है जो एक कंपनी की समाप्ति पर शेयरधारक को प्राप्त होगी। निवेश से पहले एक निवेशक कंपनी के मार्केट प्राइस  और उसके प्रति शेयर बुक वैल्यू में अंतर को देखता है। 

     मार्केट प्राइस की तुलना सामान्य रूप से बुक वैल्यू से करने से पता चलता है कि वह शेयर ओवरवैल्यूड है या अंडरवैल्यूड है।  दीर्घकालिक निवेश के लिए शेयरों का चयन करते समय अपेक्षाकृत उच्च बुक वैल्यू वाले शेयरों को प्राथमिकता दी जाती है।

Conclusion -

फंडामेंटल एनालिसिस किसी भी निवेशक के लिए उसकी निवेश रणनीति का एक महत्वपूर्ण घटक है। साथ ही सभी ट्रेडर्स को भी इसकी बेसिक समझ होनी चाहिए कि फंडामेंटल एनालिसिस कैसे काम करता है।

   परन्तु याद रखें, शेयर मार्केट किन्हीं बंधे बँधाये नियमों पर नहीं चलता, सरप्राइज देना उसके स्वभाव में शामिल है। इसलिए फंडामेंटल एनालिसिस से प्राप्त आंकड़ों पर आँख मूँद कर भरोसा करके निवेश करने से लाभ की गारंटी हो जाएगी ऐसा न सोंचे। इन आंकड़ों से स्टॉक में संभावित निवेश की वैल्यू को अवश्य समझा जा सकता है। 

 आशा है ये आर्टिकल "Basics of fundamental analysis- फंडामेंटल एनालिसिस क्या होता है" आपको फंडामेंटल एनालिसिस के तथ्यों को समझने में मददगार साबित होगा। इसे अपने मित्रों तक शेयर करें जिससे उन्हें भी इसका लाभ मिल सके। अपने सवाल और सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें। आगे टेक्निकल एनालिसिस संबंधी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें। 

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1 comment:

  1. आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है, बहुत अच्छे तरीके से हर बात को समझाया है।

    आपकी हरेक बात आसानी से समझ में आ गई है।

    मेरा भी एक blog है, http://www.finoin.com जिसमे Share market and Mutual funds Investment की जानकारी प्रदान किया जाता है।
    धन्यवाद…

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