Success Formulae-चाणक्य की साम, दाम, दंड और भेद की नीति - sure success hindi

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Tuesday 4 January 2022

Success Formulae-चाणक्य की साम, दाम, दंड और भेद की नीति

 Success Formulae-चाणक्य की साम, दाम, दंड और भेद की नीति

जब आप सफल होना चाहते हैं और अपने कार्य की सिद्धि के लिए आगे बढ़ते हैं तब राह में कुछ लोग रोड़े बनकर आपके सामने आ जाते हैं।  तब आप दुविधा में होते हैं कि ऐसे लोगों से कैसे निपटा जाए,  यह स्थिति आपकी सफलता में बाधक होती है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए आपको अपने सामने उपस्थित हर बाधा को मिटाना जरूरी होता है। आप कितने शक्तिशाली और सफल हैं इसका पैमाना भी यह है कि आप अपने मनचाहे काम को किसी से कितनी आसानी से करा लेते हैं। 


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   दुनिया में किसी भी व्यक्ति से निपटने और उससे अपना काम करवाने के लिए चाणक्य की साम, दाम, दंड और भेद की नीति आजमायी जा सकती है। राजनीति, अर्थशास्त्र और कूटनीति के महान विद्वान् आचार्य चाणक्य ने किसी को भी अपने नियंत्रण में रखने के 4 उपाय बताए हैं।  ये हैं- साम, दाम, दंड और भेद। चाणक्य की यह नीति न केवल तब (300 B.C.) उपयोगी थी, बल्कि आज भी उतनी ही प्रभावी हैं।  इन उपायों को आप किसी भी व्यक्ति पर सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर सकते हैं। 


   आचार्य चाणक्य ने सर्वप्रथम राज्य के संचालन  एवं आंतरिक-बाहरी सुरक्षा के लिए  समुचित व व्यवस्थित नीति का प्रतिपादन किया था। वे मानव मन के कुशल चितेरे थे और मानव मन की गहराइयों को समझकर उन्होंने जिन नीतियों व उपायों का वर्णन किया था वो आज भी उतनी ही प्रमाणिक है और सदा ही रहेंगी। चाणक्य के अनुसार- “सज्जन को सम्मान देकर, लोभी को धन देकर, विद्वान को तर्क देकर व दुष्ट को दंड देकर पक्ष में किया जा सकता है।”


   चाणक्य, जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त भी कहा जाता है, उनका जन्म (300 ईसा पूर्व में)  एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने तक्षशिला (अब पाकिस्तान में) में अपनी शिक्षा प्राप्त की। उन्हें राजनीति और अर्थशास्त्र के अलावा दर्शनशास्त्र व ज्योतिष का ज्ञान था।  उनके ग्रंथ अर्थ-शास्त्र में लगभग हर उस चीज का उल्लेख है जिससे भौतिकता व सामजिक व्यवहार में सफलता प्राप्त की जाती है


   आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजा बनाकर मगध क्षेत्र में शक्तिशाली नंद वंश को उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार उन्होंने राजा नंद द्वारा किये गए अपने अपमान का बदला ले लिया। वे चंद्रगुप्त के सलाहकार बन गए, वही चन्द्रगुप्त बाद में भारत के मौर्य साम्राज्य के संस्थापक कहलाये। 

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साम, दाम, दंड, भेद का अर्थ क्या होता है?

    

आचार्य चाणक्य की नीति -साम, दाम, दंड, भेद का अर्थ क्या होता है?  साम यानी सुझाव देना या समझौते का भाव दर्शाते हुए किसी से अपने कार्य को करवा लेना, दाम यानी कार्य के बदले मूल्य चुकाने की पेशकश करना या लालच देना, दंड यानी सजा देकर कार्य करने के लिए मजबूर करना और भेद यानी संबंधित व्यक्ति के गुप्त रहस्योंं का इस्तेमाल करके उसके हितैषियों के साथ उसका बैर करवाकर अपना हित साधना या उन रहस्यों का प्रयोग सीधे उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ करके उससे अपनी बात मनवाना।   


   एक दृष्टिकोण से दंड और भेद के उपाय बेहद कठोर प्रतीत होते हैं, लेकिन समाज में विभिन्न प्रकृति के लोग होते हैं इस कारण उन पर कोई एक तरीका काम नहीं कर सकता। ज्यादातर कहीं साम से तो कहीं दाम से काम चलता है, परन्तु कभी कभी दंड और भेद का उपयोग आवश्यक हो जाता है। 


   किसी राज्य के संचालन के लिए भी इन उपायों को अपनाया जाता है, अच्छे कार्य करने वालों को पुरुष्कृत करना और गलत कार्य करने वालों को दंड देकर व्यवस्था कायम करना प्रशासन के लिए आवश्यक नीति है। वास्तव में जाने अनजाने हर व्यक्ति अपना मनमाफिक कार्य करवाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति का इस्तेमाल करने की कोशिश में लगा रहता है। लेकिन अगर वह इन उपायों को समझकर सही ढंग से प्रयोग करे तो वांछित सफलता प्राप्त कर सकता है।


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साम (Saam) -


आचार्य चाणक्य की साम, दाम, दंड, भेद नीति का परिस्थिति और व्यक्ति के अनुसार प्रयोग करना चाहिए। इस नीति का पहला शब्द है -साम, अपना कोई भी काम करवाने के लिए आपको जो पहला उपाय आजमाना है वह है साम। इसमें आप संबंधित व्यक्ति को सुझाव देकर किसी कार्य को करने का निवेदन करते हैं। यहां पर आप अपनी बात समझाने के लिए उसे कार्य के फायदे बता सकते हैं जिससे वह उस कार्य को करने के लिए प्रेरित हो सके।

 

   किसी भी कार्य को करवाने के लिए सबसे पहले "साम" यानि समझौते की नीति का पालन सर्वोत्तम तरीका है। इसमें आप उसे समझाने का प्रयास करते हैं और ये उम्मीद करते हैं कि वो मान जायेगा और आपका काम निर्धारित समय में हो जायेगा। इसे उदाहरण से समझ सकते हैं। 


   मान लीजिये दो भाइयों में पुश्तैनी सम्पत्ति के बंटवारे का कोई मामला है इसमें छोटे भाई ने कोर्ट में जाने की तैयारी कर ली है। तभी बड़ा भाई उसे समझाता है कि कोर्ट जाने से दोनों का समय और धन दोनों ही बर्बाद होगा इसके बजाय हम दोनों एक और बैठक करके कोई रास्ता निकालते हैं। समझाने पर छोटे भाई को लगता है कि उसका भाई सही कह रहा है, इस प्रकार दोनों की सहमति हो जाती है और काम बन जाता है। 


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  इसका एक उदाहरण महाभारत से भी ले सकते हैं। दुर्योधन के सामने पांडवों को पांच गांव देने की समझौते वाली बात युद्ध से पहले रखी गई थी। अगर उसने यह बात मान ली होती तो युद्ध न होता। इस प्रकार अनेक योद्धाओं और सम्पत्ति सहित स्वयं दुर्योधन और कौरव वंश का समूल नाश होने से बच जाता। 


  पुराने समय में शक्तिशाली राजा सीधे युद्ध करने की जगह अपने छोटे पडोसी राजा को अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहते थे। वे उससे कहते थे कि हमारी सेना उसकी तुलना में बहुत बड़ी है और तुम्हारी पराजय निश्चित है। पडोसी राजा भी परिस्थिति को देखते हुए युद्ध में संभावित हार से बचने के लिए अक्सर अधीनता स्वीकार करने में ही भलाई समझते थे। इस प्रकार जान माल की क्षति के बिना शक्तिशाली राजा अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते थे। 


दाम (Daam)


जब "साम" या समझौते की नीति काम न करे तब आचार्य चाणक्य ने "दाम" की नीति अपनाने के लिए कहा। दाम का अर्थ है- अपना काम करवाने के लिए सामने वाले व्यक्ति को कोई लालच देना।  यह लालच पैसे, पद या किसी अन्य तरीके का हो सकता है। आज के समय में अपना काम जल्दी करवाने के लिए किसी ऑफिस में कर्मचारी को दी गयी रिश्वत इसी श्रेणी में आती है। 


   राजनैतिक पार्टियां किसी राज्य में अपनी सत्ता कायम करने के लिए इस नीति का भरपूर उपयोग करती हैं। इसमें दूसरी पार्टी के एक गुट के नेता को पैसे या केंद्र में मंत्री पद का लालच देकर अपने पक्ष में मिला लिया जाता है, वह नेता अपने साथियों को इस्तीफ़ा दिलवाकर नई पार्टी में ले आता है। इस प्रकार "दाम" की नीति पर चलकर पहला राजनैतिक दल उस राज्य में अपनी सत्ता कायम करने में सफल हो जाता है। 


   भारत में अंग्रेजों ने इस चाल का बहुत प्रयोग किया था। वे किसी राजा के सेनापति को यह कहकर अपने पक्ष में मिला लेते थे कि वे उसे राजा बना देंगे। गद्दी के लालच में आकर वह सेनापति बगावत के लिए तैयार हो जाता, इस प्रकार अंग्रेज उस राजा को हराकर अपना उल्लू सीधा कर लेते थे।


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दंड (Dand )


साम और दाम का प्रयोग करने के बाद भी अगर काम न बने तो "दंड'"की नीति अपनाई जाती है। इसमें शक्ति का प्रयोग करके सजा दी जाती है अथवा उसका भय दिखाया जाता है। दंड नीति का प्रयोग संबंधित व्यक्ति पर शारीरिक या मानसिक दबाव बनाने के लिए किया जाता है। 


   समाज में कुछ दुष्ट व्यक्ति भी होते हैं। कहा गया है -"दुर्जन: स्वभावेन परकार्ये विनश्यति" अर्थात दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे का कार्य बिगाड़ने का होता है। ऐसे लोगों को दंड देना आवश्यक हो जाता है। यदि आप दुष्ट को दंडित करोगे तो वह न केवल आपका विरोध करना बंद कर देगा अपितु आपके पक्ष में अर्थात आपके हित में कार्य भी करने लगेगा। 


  इस नीति में दंड देना ही पड़े यह जरूरी नहीं है, अक्सर सजा का भय दिखाकर भी काम बना लिया जाता है और संबंधित व्यक्ति उस सजा से बचने के लिए आपका कार्य करने के लिए मजबूर हो जाता है। अगर आप पूरा मानसिक दबाव बनाते हैं तो सज़ा देने की जरूरत ही नहीं पड़ती और आपका काम सिर्फ धमकी देने से ही बन जाता है। 


  दंड की डिग्री परिस्थिति, समय और व्यक्ति के अनुसार तय की जाती है। कठोर दंड देने से पहले स्वयं की परिस्थिति और धन बल का आकलन करना आवश्यक होता है अन्यथा आप भी मुसीबत में फंस सकते हैं। इसके लिए संबंधित व्यक्ति की शक्ति और कानून की दृष्टि से अपने विजय की संभावना को समझकर व्यवहार करना उचित होता है।    


   राज्य के संचालन में दंड का प्रावधान रखा जाता है। बहुत से लोग दंड के भय से अपराध करने से बचते हैं और जो लोग अपराध करते हैं उन्हें जेल की सज़ा दी जाती है। इस प्रकार अपराध की रोकथाम होती है। शिक्षक, क्लास में शरारती बच्चों को दंड देकर नियंत्रित करते हैं और आलसी बच्चे भी दंड से बचने के लिए अपना होमवर्क पूरा करने की कोशिश करते हैं।


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भेद (Bhed)


अगर साम दाम से या दंड देकर कार्य करवाना सम्भव न हो रहा हो तो भेद के नीति का इस्तेमाल करने की सलाह आचार्य चाणक्य देते हैं। इस नीति का अर्थ यह है कि -आप संबंधित व्यक्ति के गुप्त रहस्य जानकर उसके हितैषियों से उसका वैमनस्य करवा दें, जिससे वह व्यक्ति अकेला पड़ जाए। 


   अगर आप उसे अकेला करते हुए सामाजिक रूप से कमजोर करने में सफल हो जाते हैं तब उसे नियंत्रित करना सरल हो जाता है। जब वह अपनी कमजोर स्थिति से निपटने पर अपना सारा ध्यान लगाया होता है तब आप उसका सहारा बनकर या दबाव बनाकर उससे अपना काम सिद्ध करवा सकते हैं।  


  किसी बड़े दुश्मन परिवार से जीतना कठिन हो सकता है, परन्तु उनके सदस्यों के बीच वैमनस्य करवाकर उन्हें आपस में लड़वाकर उन पर आसानी से विजय हासिल की जा सकती है। उसी तरह किसी दुश्मन राष्ट्र को तब जीता जा सकता है, जब वहां गृहयुद्ध भड़का दिया जाए जिससे उसकी पूरी शक्ति आंतरिक व्यवस्था बनाने में लगी हो। ऐसे समय में आक्रमण करने पर वह राष्ट्र, सरेन्डर करने पर मजबूर हो जायेगा। 


   भारत में शासन करने के लिए अंग्रेजों ने इसी "भेद" उपाय से "फूट डालो और राज़ करो" वाली नीति का अनुसरण करते हुए लोगों को जाति और धर्म के नाम पर उकसाने का काम किया। जिन्ना जैसे धर्मांध नेता को आगे करके लोगों के बीच विद्वेष को भड़काया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर किया जा सके। 


  भेद बहुत ही अचूक हथियार है। संबंधित व्यक्ति के हितैषियों के बीच वैमनस्य करवाने के अलावा इसका प्रयोग उस व्यक्ति के खिलाफ सीधे भी कर सकते हैं। जब आप उस व्यक्ति के भेद या उसके गुप्त रहस्य जान लेते हैं, तब आपको यह सोचना है इन रहस्यों को अपने हित में किस प्रकार से भुनाया जा सकता है। ऐसा करके आप किसी भी व्यक्ति से अपनी बात मनवा सकते हैं।  


   आचार्य चाणक्य की साम, दाम, दंड और भेद की नीति का प्रयोग जीवन में आगे बढ़ने के साथ अपने बचाव के लिए भी कर सकते हैं। यह अति प्रभावी उपाय है, बशर्ते इसका प्रयोग उसी क्रम से बुद्धिमत्तापूर्वक करें जैसा उन्होंने बताया है। पहले साम अर्थात समझौता, स्तुति या चालाकी फिर दाम अर्थात क़ीमत या रिश्वत इसके बाद दंड अर्थात शक्ति का उपयोग या भय और अंत में भेद अर्थात उसके रहस्य जानकर गहरी चोट करना। 


    आशा है ये आर्टिकल "Success Formulae-चाणक्य की साम, दाम, दंड और भेद की नीति "आपको पसंद आया होगा, इसे अपने मित्रों को शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें। ऐसी ही और भी उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें। 


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