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Tuesday 26 January 2021

Option Trading Mistakes-ऑप्शन ट्रेडर्स की गलतियां

 Option Trading Mistakes-ऑप्शन ट्रेडर्स की गलतियां 

शेयर मार्केट में नये ट्रेडर पहले तो स्टॉक खरीदकर काम करते हैं, परन्तु जल्द ही फ्यूचर एंड ऑप्शन (F&O) का मायाजाल उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लेता है। जब वे देखते हैं कि ऑप्शन buy करके बहुत कम पैसों से भी मार्केट में पोजीशन बनाई जा सकती है, तब वे इसकी तरफ आकर्षित होते हैं। परन्तु  ऑप्शन के खेल में वो बेहद जोखिम भरा दांव खेल रहे होते हैं।  निवेश गुरु वारेन बफेट ने कहा था - "डेरिवेटिव्स एक ऐसा वेपन है जो बड़े पैमाने पर क्षति पहुंचाता है।"


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    चूंकि ऑप्शन, स्टॉक की तुलना में कहीं अधिक अस्थिर होते हैं, इसलिए यहां सख्त नियमों का पालन करना, ऑप्शन ट्रेडिंग का एक अनिवार्य हिस्सा है। कई ट्रेडर, ऑप्शन ट्रेडिंग के जोखिम को पूरी तरह से समझे बिना सस्ते ऑप्शन खरीदने की गलती करते हैं। इसके पीछे कम लागत में ज्यादा मुनाफा प्राप्त करने की लालसा काम करती है। 


   नए ट्रेडर ऑप्शन खरीदने को एक शेयर खरीदने की तरह समझते हैं, जबकि उन्हें जानने की जरूरत है कि खरीदा गया ऑप्शन धूप में रखी बर्फ की तरह पिघलने की प्रवृति रखता है। इस लेख का उद्देश्य ऑप्शन ट्रेडर्स को निर्णय लेने में मदद करने के लिए, ऑप्शन ट्रेडिंग की गलतियों के बारे में जागरूक करना है।


ऑप्शन ट्रेडर्स की 7 गलतियां (7 Option Trading Mistakes)


1. ऑप्शन की पूरी जानकारी न होना -


किसी स्टॉक को खरीदकर ट्रेडिंग करने की तुलना में ऑप्शन ट्रेडिंग काफी जटिल होती है, इसलिए बहुत से पुराने ट्रेडर भी ऑप्शन ट्रेडिंग से बचते हैं। यहां विकल्पों की अधिकता इसकी जटिलता को बढ़ाती है। ऑप्शन में अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस की एक सीरीज होती है जिसमें से अपने लिए उचित स्ट्राइक प्राइस का चुनाव करना होता है। 


   स्टॉक के कर्रेंट प्राइस के करीब वाले सभी स्ट्राइक प्राइस एट- द -मनी ऑप्शन कहलाते हैं। जब आप कॉल की बात करते हैं, तब करंट प्राइस से नीचे वाले सभी स्ट्राइक प्राइस इन-द -मनी ऑप्शन होंगे और करंट प्राइस से ऊपर वाले सभी स्ट्राइक प्राइस आउट-ऑफ-द-मनी (OTM) ऑप्शन कहलायेंगे जबकि पुट के केस में इसका उल्टा होगा। 


  जब आप बुलिश (तेजी) होते हैं तब कॉल खरीदने का सोचते हैं, परन्तु आप पुट को सेल (शार्ट) करके भी तेज़ी की पोजीशन बना सकते हैं। नए ट्रेडर इसमें अक्सर कंफ्यूज होते रहते हैं, इसलिए इसे ठीक से समझना जरूरी है। जब आप बेयरिश (मंदी) हों तब पुट खरीदने (Buy) के अलावा कॉल को शार्ट (सेल) भी कर सकते हैं। 

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   नए ट्रेडर इस बात से भी अचंभित होते हैं कि स्टॉक के उनकी दिशा में चलने के बावजूद उनके ऑप्शन का रेट बढ़ने की बजाय कम क्यों हो रहा है? वे यह नहीं समझ पाते कि वोलेटिलिटी का कम होना और टाइम वैल्यू का घट जाना इसके कारण हैं।  


2. आउट-ऑफ-द-मनी ऑप्शन खरीदना -


बहुत सारे नए ट्रेडर कम पैसे के ऑप्शन खरीदकर शुरुआत करना पसंद करते हैं। क्योंकि ये ऑप्शन, आउट-ऑफ-द-मनी (OTM) अर्थात स्पॉट प्राइस से बहुत दूर के होते हैं, इसलिए सबसे सस्ते हैं। इनके जरिये पैसे कमाने की बहुत थोड़ी संभावना है और पैसे डूब जाने के पूरे अवसर हैं। इसलिए ये ऑप्शन ट्रेडिंग की शुरुवात करने लायक नहीं हैं,  इन ऑप्शंस को लॉटरी टिकट समझें। 


 आप इनके कम रेट देखकर ज्यादा क्वांटिटी खरीदने के लिए प्रेरित हो जाते हैं। इसके बाद आपने जितना पैसा लगाया होता है वो समय के साथ कम होना शुरू हो जाता है और एक्सपायरी के दिन प्रायः शून्य होने की ओर तेज़ी से बढ़ने लगता है। जब एक्सपायरी के लिए कम समय बचा हो तब आउट-ऑफ-द-मनी ऑप्शन आकर्षक लग सकते हैं, क्योंकि इसमें लागत आम तौर पर कम होती है। 


  यह हो सकता है कि आउट-ऑफ-द-मनी ऑप्शन को खरीदने के बाद स्टॉक या इंडेक्स आपकी सोची हुई दिशा में धीरे धीरे चले। अब आपको स्वाभाविक और स्पष्ट रूप से लगता है, कि आपके खरीदे हुए ऑप्शन का रेट बढ़े। लेकिन अगर आप इन ऑप्शंस पर बहुत लंबे समय से बैठे हैं, तो सही दिशा में स्टॉक प्राइस बढ़ने का एक कदम आपकी कोई भी मदद नहीं करेगा। 


   क्योंकि समय बीतने के साथ दूर के स्ट्राइक प्राइस तक स्पॉट प्राइस के जाने की संभावना कम हो जाती है और एक्सपायरी के करीब आपके लगाए हुए पैसे लगभग समाप्त हो जाएंगे, जिसका अर्थ है कि वे आपकी खरीदी से बहुत कम मूल्य के होंगे।


3. सिंपल कॉल पुट Buy करना -


95% आम ट्रेडर ऑप्शन में घाटा खाकर निकलते हैं इसका कारण होता है, उनका सिम्पल कॉल या पुट खरीदकर करके बैठ जाना। ज्यादातर समय मार्केट, रेंज बाउंड तरीके से चलता है और उसमें धीमी गति से परिवर्तन देखा जाता है। ऐसे समय में कॉल या पुट बायर की दिशा में गति होने पर भी उसके ऑप्शन का रेट नहीं बढ़ता और एक्सपायरी आते आते उसका रेट शून्य हो जाता है। 


   कॉल या पुट बायर तभी कमा सकता है जब मार्केट या स्टॉक में तेज़ चाल (मूव) आये। इसलिए यदि सिम्पल कॉल या पुट खरीदकर ट्रेड करना चाहते हैं तो आपको बाजार में ऐसे अवसर को पहचान कर ट्रेड लेना होगा, जब तेज़ परिवर्तन की उम्मीद होती है। बजट के समय, RBI पालिसी, स्टॉक के रिजल्ट वाले दिन ऐसे अवसर हो सकते हैं जब प्राइस तेज़ी से ऊपर चढ़े या नीचे गोता लगाए।  


    सामान्य दिनों में आप कॉल-पुट buy के साथ कॉल-पुट सेल का कॉम्बिनेशन बनाने पर ही सुरक्षा के साथ कमाई की उम्मीद कर सकते हैं। जब आप कॉल-पुट को शार्ट करते हैं तब मार्जिन अधिक लगता है परन्तु यह समझना महत्वपूर्ण है कि क्या कॉल-पुट खरीदकर थोड़े थोड़े पैसे रोज़ खोने की जगह पर्याप्त मार्जिन की व्यवस्था करके एक रणनीति बनाकर ट्रेड करना अपेक्षाकृत उचित कदम नहीं होगा।


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 4. बड़ी पोजीशन बनाना -


अधिकांश फंसने वाली स्थिति तभी पैदा होती है जब आप ट्रेडिंग के सामान्य नियमों की अनदेखी करके भय या लालच के वशीभूत होकर ट्रेडिंग करते हैं। यदि आप निर्णय लेते समय लालची होते हैं, तो आप एक बड़ी पोजीशन लेकर ट्रेड कर सकते हैं, जोकि आपके एकाउंट के आकार के लिए बहुत बड़ा है। 


   जब ऐसा कोई ट्रेड आपकी सोच के विपरीत जाता है तो फिर आप एक बड़े नुकसान के साथ फंस जाते हैं। इसके विपरीत कुछ ट्रेडर बहुत छोटी पोजीशन बनाकर ट्रेड करते हैं, इसका नुकसान यह होता है कि लम्बे समय बाद भी उन्हें ट्रेडिंग से कोई विशेष लाभ होता नहीं दिखता।


   अपनी पोजीशन साइज को नियंत्रित करने के सामान्य तरीके में अपने एकाउंट में उपलब्ध पैसों के 5 प्रतिशत तक का जोखिम किसी 1 ट्रेड में ले सकते हैं। अंततः आपको किसी एक ट्रेड की साइज उतनी ही रखनी चाहिए कि अगर वह ट्रेड आपके विपरीत जाता है तो आप उसे आसानी से सहन कर सकें और आगे के ट्रेड लेने में आपको कोई परेशानी न हो। 


   ट्रेडिंग की किसी अन्य विधा की तुलना में ऑप्शन ट्रेडिंग बहुत तेज़ी से आपकी रकम को बढ़ा तो सकती है, वहीं गलत पड़ने पर उस ट्रेड में लगी पूरी रकम शून्य होने में भी देर नहीं लगती है। इसलिए ट्रेड का आकार ऐसा रखें की दिशा गलत पड़ने पर आप रात में नींद खराब न करें।


   जब आप एक नई ऑप्शन रणनीति प्रयोग कर रहे हैं तो जोखिम को कम रखने के लिए लॉट की संख्या कम रखें। बाजार की चाल, अस्थिरता और समय के साथ ऑप्शन कैसे चलते हैं, यह जानने के लिए छोटे प्रयोग करें। जब एक बार यह कांसेप्ट आपकी समझ में ठीक से आ जाये तब आप अपनी पोजीशन का साइज बढाना शुरू कर सकते हैं।


5. ट्रेडिंग प्लान नहीं होना -


आपको ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए अपनी रणनीति बनाने की जरूरत होती है। आपके लिए यह महत्वपूर्ण है कि विभिन्न ऑप्शन ट्रेडिंग की रणनीतियों की समीक्षा करते हुए यह देखना कि कौनसी रणनीति आपके द्वारा अपेक्षित दृष्टिकोण का लाभ उठाने के लिए डिज़ाइन की गई है। 


   सामान्य ट्रेडिंग गलतियों से बचने के पहले कदमों में शामिल है - एक ट्रेडिंग प्लान का होना। इस ट्रेडिंग प्लान में शामिल होना चाहिए कि -


A. आप किसी एक ट्रेड में कितना जोखिम लेने को तैयार हैं?


B. आप बाजार में किस अवसर या समय पर ट्रेड लेंगे?


C. आपके अनुसार चार्ट में कौनसे सिग्नल मिलने पर पोजीशन बनाएंगे?


D. और आप उस ट्रेड से बाहर कब निकलेंगे?


   जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, ट्रेडिंग में डर, लालच और जिद की भावनाएँ आपको गलत निर्णय करने पर बाध्य करती हैं और आप तर्कहीन निर्णय लेकर अपना नुकसान कर बैठते हैं।


   ट्रेडिंग योजना होने का मुख्य लाभ इन भावनाओं को आपके ट्रेड से दूर करना है। यह एक ऐसी प्रक्रिया भी बनाता है, जिससे त्वरित निर्णय आसानी से लिया जा सकता है। 


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   योजना बनाकर ट्रेड करने से आपको यह सीखने में मदद मिलती है कि आगे किस प्रकार के सुधार की जरूरत है जिससे गलतियों की पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है। 


  एक योजना के बिना ऑप्शन ट्रेडर के रूप में सुधार करना और आगे बढ़ना बहुत मुश्किल हो जाता है। यह आपके लॉस को सीमित रखने के साथ प्रॉफिट को बुक करने में भी मदद करता है।


   जब आप ऑप्शन का एक ट्रेड लेते हैं, तब दृष्टिकोण तैयार करने में वर्तमान ट्रेंड के साथ आपका एक दिशात्मक पूर्वाग्रह शामिल होता है। आपको अपने प्लान में यह शामिल करना होता है कि कितने समय तक आप अपने विचार के साथ रुकेंगे। 


   अर्थात आपको अपने ट्रेड के सकारात्मक दिशा में चलने के लिए एक समय सीमा भी निर्धारित करना होता है। जिससे कि दिशा गलत पड़ने पर आप सौदे से एग्जिट करके अपने लॉस को सीमित कर सकें। 


6. फ़ास्ट एक्शन न लेना -


एक ऑप्शन ट्रेडर को त्वरित निर्णय लेने और उसे शीघ्र लागू करने की जरूरत होती है। इंट्राडे में बहुत से ऐसे अवसर आते हैं जब मार्केट तेज़ चाल दिखाता है, ऐसे समय में विशेष रूप से ऑप्शन का प्रीमियम बहुत तेज़ी से बढ़ता है अथवा कम होने लगता है।  


   यदि ऐसे मौके पर ऑप्शन ट्रेडर तेज़ी से एक्शन लेने की जगह सोच विचार में पड़ा रहता है, तब उसका लॉस बहुत अधिक बढ़ सकता है। साथ ही अगर वो प्रॉफिट में बैठा है तो कुछ ही देर में उसका प्रॉफिट, लॉस में बदल सकता है। इसलिए ऑप्शन ट्रेडर को फ़ास्ट एक्शन लेने के लिए तैयार रहना पड़ता है।


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7. स्टॉप-लॉस का उपयोग नहीं करना -


ऑप्शन ट्रेडर्स प्रायः अपने सौदों में स्टॉप-लॉस रखने का ध्यान नहीं रखते। वे तब तक एक ऑप्शन खरीदकर बैठे रहते हैं, जब तक कि वह शून्य तक नहीं पहुंच जाता है। ऑप्शंस की हाई वोलैटिलिटी (उच्च अस्थिरता) के कारण निश्चित रूप से स्टॉप लॉस के जल्दी ट्रिगर होने का खतरा होता है।  


   इससे बचने के लिए स्टॉक की तुलना में ऑप्शन ट्रेड करते समय, स्टॉप लॉस दूर का रखा जाना चाहिए। कुछ विशेषज्ञ ऑप्शन ट्रेडिंग के दौरान नुकसान को 20- 25% तक सीमित करने का सुझाव देते हैं। यह उस 5 -10% की लिमिट से अधिक है जो बहुत से स्टॉक ट्रेडर्स, स्टॉप-लॉस ऑर्डर के लिए उपयोग करते हैं।  


   कुछ नए ऑप्शन ट्रेडर्स, लॉस होने पर एवरेज करने लगते हैं, परन्तु एवेरेजिंग के जरिये ऑप्शन सौदे को लाभ में बदलना बहुत मुश्किल है। आपके ऑप्शन मूल्य कम होने का मतलब यह है कि आपकी सोची हुई दिशा गलत थी और अब आप और भी डीप OTM में बैठे हैं। साथ ही एक्सपायरी का समय भी पहले की तुलना में कम बचा है, इसलिए एवरेज करने के बाद भी आपका सोचा हुआ रेट आना मुश्किल होगा। 


  किसी स्टॉक में ली गई कैश या फ्यूचर की पोजीशन की हेजिंग के लिए ऑप्शन का प्रयोग करना प्रभावी हो सकता है। सिर्फ ऑप्शन में ट्रेड करने के लिए कैलेंडर स्प्रेड, बुल कॉल-पुट स्प्रेड, स्ट्रैंगल (Strangle) आदि रणनीतियों को समझे और अपने अनुकूल रणनीति का चयन करके ऑप्शन ट्रेडिंग में सफलता पाई जा सकती है।  


   आशा है ये आर्टिकल "Option Trading Mistakes-ऑप्शन ट्रेडर्स की गलतियां" आपको पसंद आया होगा, इसे अपने मित्रों को शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें। ऐसी ही और भी उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।


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1 comment:

  1. आप ने जो लिखा है बहुत हद तक सही है,लेकिन आज तक मैंने कभी स्टॉप लॉस नहीं लगाया अपने किसी भी ट्रेड में।

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