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Friday 28 June 2019

Mistakes in intraday trading. शेयर मार्केट में डे ट्रेडर की गलतियां

Mistakes in intraday trading. शेयर मार्केट में डे ट्रेडर की गलतियां 

शेयर मार्केट में इंट्राडे ट्रेडिंग में लॉस क्यूँ होता है। नए ट्रेडर को तो चार्ट एनालिसिस या ट्रेडिंग टूल्स का जरा भी ज्ञान नहीं होता, वह बिना किसी टेक्निकल एनालिसिस के किसी से सुन के या अंदाज़न अपना सौदा डालता है। 

   इस पीरियड में वह मार्केट से सीखता है और उसे ट्रेडिंग में लॉस होना स्वाभाविक है।  यहां हम थोड़े पुराने ट्रेडर्स की बात करेंगे जिन्होंने चार्ट रीडिंग करना सीख लिया है और ट्रेडिंग के लिए इंडिकेटर का प्रयोग करना भी जान चुके हैं। इतना सब जान लेने के बाद भी डे ट्रेडिंग में घाटा क्यों हो रहा है? 

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   दरअसल डे ट्रेडिंग में स्ट्रेटेजीज से कई गुना अधिक रोल होता है, ट्रेडर की सोच का। दोस्तों इंट्राडे ट्रेडिंग एक माइंड गेम है। ट्रेडर को लॉस होता है तो वह मार्केट को दोष देता है, अपनी किस्मत को दोष देता है। जबकि उसे जरूरत होती है स्वयं का विश्लेषण करने की। 

   ट्रेडर अपने अंदर झाँक कर देखेगा तो जान पायेगा कि घाटा होने के पीछे उसके जरूरत से अधिक फियर, ग्रीड के साथ समय पर एंट्री -एग्जिट न कर पाने वाली उसकी मानसिकता ही सबसे बड़ा कारण है। आइये  विश्लेषण करते हैं शेयर मार्केट में डे ट्रेडिंग के दौरान होने वाली गलतियां और उनका  निदान कैसे कर सकते हैं।  

शेयर मार्केट में डे ट्रेडर की गलतियां और उसका समाधान 

1. ट्रेडिंग की लत हो जाना -

जैसे शराब, सिगरेट या तम्बाकू का कुछ दिन लगातार सेवन करने के बाद इसकी आदत पड़ जाती है या कहें कि इसकी लत लग जाती है। उसी तरह शेयर मार्केट में कुछ दिन ट्रेड करने के बाद आदमी इसका भी लती हो जाता है। 

   सुबह मार्केट के खुलते ही उसके अंदर ट्रेड करने की खुजाल मचने लगती है। मार्केट को ऊपर या नीचे जाते देखकर वह सोचने लगता है कि अगर अभी ट्रेड नहीं लिया तो उसका बड़ा नुकसान हो जायेगा। वह अपने मोबाइल एप या लैपटॉप को खोलकर बैलेंस अमाउंट पर नज़र डालता है फिर ब्रोकर तो डे ट्रेडिंग के लिए मार्जिन देने बैठा ही है। 

  बिना देरी किये सिस्टम में एक सौदा झोंक देता है। फिर इस सौदे का हश्र भी वही होता है जो अब तक होता आया है। पहले सौदे में घाटा होने के बाद बेचैनी और बढ़ जाती है इस घाटे को कवर करने की। इस तरह शराबी के जाम पर जाम चढ़ाते जाने की तरह ट्रेड के बाद और ट्रेड होते जाते हैं और मार्केट बंद होने तक पूरा अमाउंट साफ़ हो चुका होता है। फिर हैंगओवर की तरह पूरा दिन तनाव में गुजरता है। लगभग हर ट्रेडर ने इस तरह की स्थिति का सामना किया है। 

इससे कैसे बचें - 

पहली बात अपने दिमाग में गाँठ बांध लें कि इंट्राडे ट्रेडर का मतलब अपने ट्रेड को दूसरे दिन के लिए कैरी न करते हुए उसी दिन एग्जिट करना होता है, परन्तु इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आपको डेली ट्रेड करना ही है। अधिकांश सफल इंट्राडे ट्रेडर, डेली ट्रेड नहीं करते। कुछ तो महीने में 3 या 4 ट्रेड ही करते हैं। 

    इसका मतलब ये नहीं है कि बाकी दिन वो मार्केट को वाच नहीं करते। दरअसल वो मौके की ताक में रहते हैं, जब कभी उनके ट्रेडिंग सेटअप से कोई buy या sell का इंडिकेशन आता है तो वो तुरंत सौदा पकड़ते हैं। यह मौका किसी सप्ताह में 2 बार भी आ सकता है या कभी महीने में 2 बार। 

   आप भी अपने लिए किसी इंडिकेटर या ट्रेड लेने के लिए किसी सिस्टम (जिसमे एक से अधिक इंडिकेटर भी हो सकते हैं) का चुनाव करें और अपने अनुभव की कसौटी पर उसे परखें। जब वो ज्यादातर खरा उतरता दिखे तो उसका इस्तेमाल अपनी ट्रेडिंग के लिए करें। इस मार्केट में कोई भी ट्रेडर या इंडिकेटर 100% हमेशा सही नहीं हो सकता। पर बेहतर मौका देखकर ट्रेड करने से दिल में मलाल तो नहीं होगा। 

   सारांश में कहें तो "मौका देखकर चौका" लगाएंगे तभी ट्रेडिंग के मैदान में टिक पाएंगे। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो खिलाड़ी नहीं, अनाड़ी बनकर दर्शक दीर्घा में बैठने के सिवा कोई चारा नहीं बचेगा। क्योंकि "पैसा खतम तो खेल खतम".  
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2. अपनी प्रकृति के विपरीत काम करना -

जब हम डे ट्रेडिंग करने जाते हैं तो हमारे सामने कई विकल्प आते हैं। कुछ लोग केवल इंडेक्स यानि निफ़्टी या बैंकनिफ्टी में ट्रेड करते हैं तो कुछ स्टॉक्स में ही काम करते हैं। वही कुछ ट्रेडर future & option (F&O) सेगमेंट में ट्रेड करने में कुशल होते हैं। 

   कुछ दिनों बाद हर जागरूक ट्रेडर यह समझ जाता है कि अगर उसे स्टॉक्स ट्रेड करना है तो कौनसे स्टॉक्स उसके लिए अच्छे हैं, जिनकी चाल का अंदाज़ा उसे बेहतर तरीके से है। या उसे स्टॉक्स पर ध्यान न देते हुए केवल इंडेक्स ट्रेड करना अच्छा लगता है। इसमें भी निफ़्टी या बैंकनिफ्टी में से जिसे वह अच्छे से समझ पाता है उसका चुनाव करना बेहतर होगा। 

   अगर ऐसा अब तक नहीं किया है और कभी भी कुछ भी ट्रेड करने की प्रवृति है तो इस पर लगाम लगाने की जरूरत है, अन्यथा सफलता आपसे दूर ही रहने वाली है। बिज़नेस न्यूज़ चैनल में दिन भर आने वाली ये भी, वो भी खरीदो की सलाह से विचलित होने की जरूरत नहीं है। अपने लिए बेहतर ट्रेडिंग सेटअप का पालन डिसीप्लीन के साथ करने में ही भलाई है।

   गुरुवार को वीकली एक्सपायरी का गेम देखें। एक्सपायरी के कारण निफ़्टी और बैंकनिफ्टी के ऑप्शन, प्रीमियम बहुत कम होने के कारण कम पैसों में भी ट्रेड किये जा सकते हैं। कुछ दिन वाच करने के बाद अगर सुविधाजनक लगे तो वीकली एक्सपायरी के इंडेक्स ऑप्शन ट्रेड कर सकते हैं। 

    अब ट्रेड टाइमिंग की बात करें तो बहुत से ट्रेडर मार्केट खुलने के आधे घंटे बाद ट्रेड करने की सलाह देते मिलेंगे। वहीं कुछ ट्रेडर मार्केट खुलने के बाद प्रारम्भिक 10 मिनट में अपना काम करके निकल जाते हैं, यदि उन्हें अपने ट्रेडिंग सेटअप से कोई सिग्नल मिला। अन्यथा अगले दिन का इंतज़ार करते हैं। 

    आप अपनी प्रवृति को जांचे और देखें कि कौनसा समय आपको अधिक उपयुक्त लगता है ट्रेडिंग के लिए। 10 बजे से लेकर 1 बजे के बीच अपेक्षाकृत शांत समय में या दोपहर 1 बजे के बाद जब मार्केट ज्यादा वोलेटाइल होता है। 

    समय का चुनाव करके पहले, छोटे ट्रेड लेकर प्रयोग करके देखें। इसमें सफल होने पर मौके की ताक में रहें। इंट्राडे ट्रेड 10 मिनट चार्ट के आधार पर लिए जाते हैं। आपके इंडिकेटर से सिग्नल मिलने के बाद मार्केट की दिशा और दशा समझकर ही ट्रेड करें। 

    जब आप ट्रेड लेते हैं तो कभी थोड़ी देर में ही SL या टारगेट ट्रिगर हो जाता है पर कभी कभी 2 -3 घंटे तक धैर्य पूर्वक इंतज़ार करना पड़ सकता है। इस समय आपके रेट से कभी ऊपर और कभी नीचे की स्थिति बनती रहेगी। ऐसे समय में जो ट्रेडर अपना धैर्य खो देगा उसके नुकसान उठाने के चांस बढ़ जायेंगे। 


    जिन ट्रेडर में इंतज़ार करने का धैर्य नहीं होता और जो फ़ास्ट गेम चाहते हैं, वो scalping ट्रेड करना पसंद करते हैं। ये लोग क्विक एंट्री- एग्जिट में एक्सपर्ट होते हैं। इसमें क्वांटिटी बढ़ाकर छोटे मूवमेंट को कैश किया जाता है। यहां 1 से 3 मिनट का चार्ट भी महत्वपूर्ण होता है, जिसके आधार पर कुछ मिनटों के अंदर ही एंट्री और एग्जिट करके मुनाफा कमाने की कोशिश की जाती है। 

   इस काम में बहुत कुशल और अनुभवी ट्रेडर ही सफल होते हैं। अपनी प्रवृति और जोखिम उठाने की अपनी क्षमता के अनुसार ट्रेडर इसकी प्रैक्टिस भी कर सकता है। 

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3. जल्दी निर्णय न ले पाना -

इंट्राडे ट्रेडिंग बेहद फ़ास्ट गेम है। यहां ट्रेडर के धैर्य और फुर्ती दोनों की परीक्षा होती है। किसी दिन मार्केट बहुत छोटे दायरे में दिन भर निकाल देता है और कभी अचानक 5 -10 मिनट में निफ़्टी 50 या 100 पॉइंट घूम सकता है और फिर वापस वहीं आकर रुक जाता है। 

   मान लीजिये निफ़्टी किसी कारण से 10 मिनट में 70 पॉइंट नीचे आ जाता है और फिर उसी फुर्ती से ऊपर आकर लगभग अपनी पहले वाली जगह में आ जाता है। इस तरह की स्थिति मार्केट में बनती ही रहती है खासकर वीकली एक्सपायरी के दिन। वैसे देखा जाए तो इसमें दोनों साइड का गेम बनता है और थोड़े से कुशल ट्रेडर इसका पूरा फायदा उठाते हैं। 

   परन्तु ज्यादातर शार्ट और लॉन्ग दोनों साइड के ट्रेडर लॉस बुक करके निकलते हैं। यहां ऐसे ट्रेडर के साथ अपनी मानसिकता को भी समझते जाइये। जो ट्रेडर निफ़्टी को शार्ट करके बैठा है वह पहले निफ़्टी को गिरते हुए देखता है तेजी से निफ़्टी के 70 पॉइंट नीचे आने पर भी वह प्रॉफिट बुक करने के लिए एग्जिट नहीं करता। 

   उसकी सोच बनती है कि ये अभी और 50 पॉइंट गिरेगा तब स्क्वायर ऑफ करके लम्बा मुनाफा बुक करूंगा जिससे कल का घाटा एक बार में कवर हो जायेगा। 

   अब निफ़्टी वापस ऊपर बढ़ना शुरू कर देता है 70 निगेटिव से 40 निगेटिव दिखने लगता है। अब ये ट्रेडर भौंचक हो जाता है, पर सौदा अभी भी नहीं काटता।  उसके मन में आता है कि जब पहले 70 पॉइंट नहीं लिया तो अब 40 पॉइंट क्या लेना। 

   वह निफ़्टी को ऊपर आते देखता रहता है, तभी मोमेंटम के कारण निफ़्टी उसके शार्ट किये हुए रेट से थोड़ा ऊपर दिखने लगता है। इसकी घबराहट बहुत बढ़ जाती है क्योकि प्रॉफिट की जगह लॉस का भय सताने लगता है। अब या तो SL हिट हो जाता है या फिर ट्रेडर स्वयं एग्जिट करने पर मजबूर हो  जाता है।
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    इस तरह जहां उसे 70 पॉइंट प्रॉफिट हो रहा था, वही पर अब 10 -20 पॉइंट का लॉस उसके खाते में आता है। इसी प्रकार लॉन्ग करने वाला ट्रेडर अगर SL लगाया है तो SL हिट होता है। अन्यथा निफ़्टी के 20 -30 पॉइंट गिरने पर वह एग्जिट नहीं करता और सोचता है कि निफ़्टी अभी रिवर्स कर लेगा पर जब निफ़्टी 50 पॉइंट तक गिरता चला जाता है तो उसका भय बहुत बढ़ जाता है और धैर्य जवाब देने लगता है फिर घबराहट में वह एग्जिट करता है और  25 की जगह 60 -70 पॉइंट का नुकसान झेलता है। 


    इस तरह पहले ट्रेडर का अति लालच उसे प्रॉफिट बुक करने नहीं दिया और दूसरे ट्रेडर का समय पर  "लॉस बुक न करने " की प्रवृति ने उसका नुकसान, छोटे से बड़ा कर दिया। भले ही निफ़्टी वापस ऊपर आ गया परन्तु वह 150 माइनस भी हो सकता था इसलिए निफ़्टी के गिरने पर शुरू में ही निकलना श्रेष्ठ रणनीति थी। 

    इससे बचने के लिए सौदा डालने से पहले ही अपने लॉस और प्रॉफिट को डिफाइन कर लें। और वहां रेट के पहुंचते ही बिना किसी किन्तु परन्तु के एग्जिट करें। फिर सिस्टम को बंद कर दें। 

   "अगर और रुका होता तो  लम्बा मुनाफा आज ही कमा लेता", इस प्रकार की फालतू बातों को सोच सोच कर अपना दिमाग खराब न करें। याद रखें कभी भी स्टॉक या इंडेक्स के टॉप या बॉटम में एंट्री- एग्जिट पॉसिबल नहीं होती। प्रयास करें कि नुकसान छोटा हो तभी निकल जाए अन्यथा बड़ा नुकसान आपके दिन का चैन और रातों की नींद खराब कर देगा। 

  छोटा लॉस अगले किसी ट्रेड में कवर किया जा सकता है, लेकिन अगर यह बड़ा हो जाता है, तो आप कम पूंजी के साथ उसे कवर नहीं कर सकते हैं।

conclusion -

ट्रेडिंग करते समय अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें और व्यावहारिक रहें। ट्रेडिंग करते समय उपरोक्त सावधानियां रखें इसके बावजूद लॉस होना भी ट्रेडिंग का ही पार्ट है, उससे बचा नहीं जा सकता। आपकी स्किल जितनी बढ़ेगी और भावनाओं पर जितना नियंत्रण होता जायेगा उसी अनुपात में प्रॉफिट होने के चांस बढ़ते जाएंगे। 

    स्टॉक मार्केट में ट्रेड करना मानसिक दबाव बहुत अधिक देता है और इसे अकेले ही झेलना पड़ता है। अगर यहां बने रहना है तो "take it easy" पालिसी अपनाये। 

    आशा है ये आर्टिकल "Mistakes in intraday trading. शेयर मार्केट में डे ट्रेडर की गलतियां " आपको उपयोगी लगा होगा। इसे अपने मित्रों तक शेयर करें। अपने सवाल और सुझाव के लिए कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं।  आने वाले आर्टिकल में भावनाओं के कारण ट्रेडर से  और कौन कौन सी deadly mistakes होती हैं, उनकी चर्चा की जायेगी। इसलिए इस वेबसाइट पर विजिट करते रहें। 

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4 comments:

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