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Saturday 13 August 2022

Anil Agarwal-अरबपति अनिल अग्रवाल की कहानी

Anil Agarwal-अरबपति अनिल अग्रवाल की कहानी 

एक छोटे बिज़नेस से शुरुवात करके बिजनेस टायकून बनने वालों की लिस्ट में वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल का नाम शामिल है। उन्होंने फर्श से अर्श तक की ऊंचाई बिना किसी मजबूत आर्थिक विरासत के स्वयं अपने बलबूते पर प्राप्त की है। 


 1954 में पटना, बिहार में जन्में अनिल अग्रवाल की सफलता में किसी बिज़नेस मैनेजमेंट डिग्री का भी हाथ नहीं है। देश के टॉप बिजनेसमैन की लिस्ट में शुमार अनिल अग्रवाल की सफलता इस बात को झुठलाती है कि धनपति बनने के लिए डिग्री प्राप्त करना जरूरी है, उन्होंने केवल हायर सेकंडरी तक पढ़ाई की है।

 

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   पटना के स्कूल में पढ़ने के दौरान अनिल पढ़ाई में अच्छे नहीं थे, पढ़ने के नाम पर उन्हें नींद आने लगती थी। उनके टीचर अक्सर उनसे कहते थे कि पढ़ाई तुम्हारे बस की बात नहीं है। उन्हें बचपन से ही फिल्म देखने का शौक था और फिल्मों की चकाचौंध उन्हें आकर्षित करती थी। 


   अनिल अग्रवाल 19  साल की उम्र में बड़े सपने लेकर पटना से मुंबई पहुंच गए। वहां उन्होंने छोटी सी जगह में कबाड़ के धंधे से अपनी व्यवसायिक यात्रा शुरु की और आज यह शख्स दुनिया के शीर्ष अरबपतियों की लिस्ट में शामिल है। अनिल अग्रवाल की कुल संपत्ति 3.3 अरब डॉलर है और उनकी कम्पनी वेदांता भारत की सबसे बड़ी खनन और अलौह धातु कंपनी है। 


   वेदांता, भारत में जस्ते, तांबे व एल्युमिनियम की सबसे बड़ी उत्पादक है, साथ ही कंपनी का अपनी परियोजनाओं के जरिये विस्तार कार्य जारी है। वेदांता लिमिटेड की फाइनेंसियल ईयर 2022 -23 में जिंक, आयल व गैस और एल्युमीनियम सेक्टर में करीब 2 अरब डॉलर के निवेश की योजना है। 


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कबाड़ी से मेटल किंग बनने का सफर (Success Story of Anil Agarwal)


1. पटना से मुंबई पहुंचे -


किराये की जगह में कबाड़ का व्यापार शुरू करके माइंस और मेटल के सबसे बड़े कारोबारी बनने तक के सफर में उन्हाेंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। वे अपने इंटरव्यू में बताते है कि मुंबई पहुंचने पर वो वहां की ऊँची ऊँची इमारतों, डबल डेकर बसों और वहाँ की तेज़ लाइफ स्टाइल को देखते रह गए। इसके पहले यह सब उन्होंने फ़िल्मी पर्दे पर ही देखा था। 


   माया नगरी का आकर्षण ही कुछ ऐसा है जो लोगों को अपने मोहपाश में बाँध लेता है। अपने साथ बिस्तर और टीन की पेटी लेकर पहुंचे अनिल अग्रवाल ने उसी समय मुंबई में बसने का फैसला कर लिया। वर्तमान समय में "द मेटल किंग-अनिल अग्रवाल" अपने परिवार के साथ लंदन में निवास कर रहे हैं और वहीं उनकी कम्पनी का हेड ऑफिस भी है।  वे दुनिया के सबसे बड़े जस्ता उत्पादक होने के साथ और दूसरे बड़े तांबा उत्पादक हैं

 

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2. लंदन जाना टर्निंग पॉइंट रहा - 


कबाड़ के काम के बाद उन्होंने मेटल उत्पादन के क्षेत्र में कदम रखा और इस काम में सफल रहे।अनिल अग्रवाल बड़े सपने देखते थे और अपने बिज़नेस को बड़ा करना चाहते थे, परन्तु कारोबार बढ़ाने के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है और उस समय भारत में पूँजी जुटाना मुश्किल था।


 यहां कई तरह की विपरीत न्यूज़ के चलते उनकी कम्पनी का सही मूल्यांकन भी नहीं हो पा रहा था, यह केवल 100 करोड़ की कम्पनी थी। तभी उन्होंने सुना कि लंदन में बहुत पैसा है इस तरह उनकी नज़र लंदन के मार्केट पर गई।  उन्होंने देखा कि लंदन ही वह मार्केट है जहाँ मेटल और माइनिंग की ज्यादातर कंपनियां लिस्ट होती हैं।  


   2003 में अनिल अग्रवाल ने अपनी कंपनी को लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सफलतापूर्वक लिस्टिंग करवाते हुए पहले ही साल में 875 मिलियन डॉलर जमा कर लिए।  यह उस साल का सेकंड लार्जेस्ट आईपीओ था बाद में यहाँ से जुटाई रकम 33 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई।


   यह अनिल अग्रवाल के अथक प्रयासों का ही परिणाम था कि वेदांता पहली भारतीय कंपनी बनी, जिसने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टिंग हासिल की और फिर वेदांता विश्व की बड़ी माइनिंग और मेटल कंपनियों की लिस्ट में शामिल हो गई। यह एक बड़ी सफलता थी। 


   अनिल अग्रवाल की पैनी नज़र भविष्य में लाभ देने वाली छोटी- बड़ी कंपनियों पर रहती है, फिर वे उनको खरीदने का मौका तलाशते हैं। उनकी विशेषता यह है कि वे असफल कंपनियों को खरीदकर और उन्हें सफल बनाकर अपने कारोबार का विस्तार करते रहे हैं। 


   प्राइवेट के साथ उन्होंने भारत में सरकारी क्षेत्र की हिंदुस्तान जिंक और बालको (भारत एल्युमीनियम कंपनी) को 2004 में एक्वायर किया। अपने कुशल संचालन के बल पर उन्होंने इन कंपनियों को 20 गुना बड़ा कर दिया। 


3. असफलता को हावी नहीं होने दिया -


सरकारी क्षेत्र की कंपनियों का अधिग्रहण हो या लंदन में कम्पनी की लिस्टिंग, अनिल अग्रवाल को सब कुछ इतनी आसानी से हासिल नहीं हुआ है।  प्रारंभिक दौर में उन्होंने 9 ऐसे  बिज़नेस भी किये, जिनमें उन्हें नुक्सान हुआ। परन्तु धुन के पक्के अनिल अग्रवाल ने हार नहीं मानी और असफलता से सीख लेते हुए अपने काम में लगे रहे। उन्हें प्रशासनिक परेशानियां भी झेलनी पड़ीं, भारत में उन पर एक्साइज और इनकम टैक्स के कई केस भी चले। 

 

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   संघर्ष के प्रारम्भिक दौर के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि कभी उनके पास मजदूरों को देने और  कच्चा माल खरीदने के पैसे भी नहीं होते थे। फैक्ट्री में लेबर की स्ट्राइक का सामना भी उन्हें करना पड़ा था ऐसे समय में वे घर बैठने के बजाय उस समय के मजदूर नेता दत्ता सामंत के घर जाकर स्ट्राइक खत्म करने की मिन्नतें करते। मजदूर नेता उनका अपमान करके भगाते फिर भी वे डटे रहे और स्ट्राइक को खत्म करवाकर ही दम लिया। 


4. टेक्नोलॉजी पसंद -


अनिल अग्रवाल का मानना है कि विकास के लिए आधुनिक तकनीकी को अपनाना आवश्यक है। अपनी कंपनी में जहां कहीं भी आवश्यकता पड़ती है, वे टेक्नोलॉजी को अपनाने से नहीं चूकते। आने वाले समय में उनकी कंपनी सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में भी कदम रखने वाली है। 


   अनिल अग्रवाल ने अपनी कंपनी के AGM में कहा -"ना सिर्फ दुनिया भर में सेमी -कंडक्टर्स की शार्ट सप्लाई है, बल्कि भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर है।" भारत में 2026 तक सेमीकंडक्टर पर होने वाला खर्च 80 अरब डॉलर और 2030 तक बढ़कर 110 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।  


  ऐसे में भारत में इंटीग्रेटेड सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग सेटअप करने के लिए वेदांता ने दुनिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक मनुफक्चरर्स में से एक Foxconn के साथ एक MoU किया है। अनिल अग्रवाल ने कहा कि यह भारत में सिलिकॉन वैली विकसित करने की शुरुवात है।  


5. विनम्र स्वभाव के धनी -


अनिल अग्रवाल विनम्र स्वभाव के हैं और अरबपति बनने के बाद भी वे अपनी जड़ों को नहीं भूले, यह भी उनकी सफलता की एक बजह है। वे आज भी बड़ी सरलता से अपने संघर्ष के दिनों की बात बताते हैं और उन्हें पूर्व मेटल ब्रोकर कहलाने में कोई संकोच नहीं है। वे कहते है कबाड़ी का काम और दलाली का काम बेसिक बिज़नेस हैं। 


   अपने पिता की कही एक बात उनके जीवन का मूल मंत्र है -"किसी से उलझने की बजाय अगर उसकी पीठ थपथपाने से तुम्हारा काम बनता है, तो उसकी पीठ थपथपाकर अपना काम बनाते चलो।" अपने इंटरव्यू में वे बताते हैं कि पुराने समय की दो चीज़ें उनमें आज तक बरकरार हैं -एक बॉलीवुड फिल्मों से उनका प्रेम और दूसरा -अंग्रेजी अच्छे से न बोल पाना।


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     पटना से मुंबई पहुंचने के समय उन्हें अंग्रेजी के Yes  और No, ये दो शब्द ही आते थे। परन्तु आज उसी शख्स को विश्व की नामी यूनिवर्सिटी अपने यहां लेक्चर देने बुलाती हैं और उनके लेक्चर काफी पसंद किये जाते हैं क्योंकि वे उनकी दिल की आवाज़ होते हैं। अनिल अग्रवाल कहते है -"कभी भी डरना नहीं और अपनी विनम्रता को छोड़ना नहीं।" 


    अपनी जर्नी और समय में आये बदलाव की चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि- "एक समय था जब मैं देर रात घर पहुंचता था और तब तक मेरी बीवी मेरा इंतज़ार करती रहती फिर हम साथ बैठकर भोजन करते और उस दिन की सफलता असफलता की चर्चा करते थे। आज बड़ा मकान हो गया, बच्चे इधर उधर चले गए तो कोई स्वागत करने वाला नहीं। इसलिए अब 2 कुत्ते रखे हैं, घर जाते हैं तो वही गले लगते हैं और हम उन्हीं के साथ खुशियां बांटते हैं। ऐसा नहीं है कि प्यार कम हुआ है परन्तु समय बदलता है तो चीज़ें भी बदलती हैं।" 


   अनिल अग्रवाल कहते हैं -"हमेशा अपने लक्ष्य पर पैनी नज़र रखो और ऐसे लोगों की टीम बनाओ जो आपकी कमियों को पूरा कर सकें।" वे आगे कहते हैं -"शैक्षणिक योग्यता में कमी होना कोई बाधा नहीं है, आप चार्टर्ड अकाउंटेंट और क्वालिफाइड लोगों को अपने यहां नियुक्त कर सकते हैं।" 


  फोर्ड कंपनी के मालिक हेनरी फोर्ड भी यही कहा करते थे -"अगर मैं पढ़ा लिखा नहीं हूँ तो क्या हुआ? मैं पढ़े लिखे लोगों को अपने यहां नौकरी पर रखकर आसानी से इस कमी की पूर्ति  कर सकता हूँ।" 


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6. दान में भी आगे -


अनिल ने जहां भी अपना कारोबार बढ़ाया चाहे वह अफ्रीका हो या इंडिया, लोगों की भलाई विशेषकर महिलाओं और बच्चों के हित के लिए काम भी किया है। दानदाता कहलाना अनिल अग्रवाल को पसंद नहीं है। वे कहते हैं -"उनके पास जो कुछ है वह इसी समाज ने उन्हें दिया है और अब वे उन्हें लौटा रहे हैं इस प्रकार वे अपना ऋण लौटा रहे हैं।" 


   अनिल अग्रवाल की शख्सियत से प्रभावित होकर बिल गेट्स उनसे मिलना चाहते थे। मिलने पर अनिल की फर्श से अर्श तक की यात्रा की बिल गेट्स ने भी प्रशंसा की थी। बिल गेट्स से मिलने के बाद अनिल अग्रवाल और उनके परिवार ने फैसला किया कि वे अपनी सम्पत्ति का 75% हिस्सा दान दे देंगे।


  भारत में उन्होंने चिकित्सा सुविधा बढ़ाने के लिए हॉस्पिटल खोले हैं, ऐसा ही एक हॉस्पिटल छत्तीसगढ़ के नया रायपुर में "वेदांता कैंसर हॉस्पिटल", कैंसर रोगियों के लिए कार्य कर रहा है।


  महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए उन्होंने भारत में आंगनबाड़ी की तर्ज़ पर 4000  नन्द घर बनाये हैं, जो महिलाओं को काम उपलब्ध करवाने के साथ उनकी आर्थिक स्थिति को सदृढ़ बनाने में सहयोग कर रहे हैं। 


  इसके अलावा, उनकी योजना उड़ीसा में वेदांता विश्वविद्यालय के निर्माण की है। इसमें वे सात हजार करोड़ रुपया खर्च करके विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय प्रारम्भ करना चाहते हैं। इसमें उपलब्ध कुल सीट में से 50% के जरिये देश के गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलेगी व 25% विदेशी स्टूडेंट होंगे। परन्तु अभी कुछ लोगों के विरोध के चलते यह योजना कोर्ट में विचाराधीन है।


   आशा है ये आर्टिकल "Anil Agarwal-अरबपति अनिल अग्रवाल की कहानी "आपको पसंद आया होगा, इसे अपने मित्रों को शेयर कर सकते हैं। अपने सवाल एवं सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें। ऐसी ही और भी उपयोगी जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर विज़िट करते रहें।


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