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Saturday 13 July 2019

Ponzi scheme frauds.पोंज़ी स्कीम क्या है, इसकी ठगी से कैसे बचें

Ponzi scheme frauds.पोंज़ी स्कीम क्या है, इसकी ठगी से कैसे बचें 

पोंज़ी स्कीम (ponzi scheme) यानि ठगी और पैसे लूटने का वह आधुनिक तरीका जिसमें  चोरी डकैती करने की जरूरत नहीं होती और न ही शिकार को धमकाने चमकाने के लिए बंदूक या चाकू -छुरी जैसे अस्त्र शस्त्र की जरूरत होती है। इसका शिकार व्यक्ति स्वयं ही अपना सारा धन शिकारी को सौंपने पर मजबूर हो जाता है। 

  जिस तरह मछली को फंसाने के लिए आटे का लालच दिया जाता है और मछली अपने लालच के कारण आटे के बीच में छिपे कांटे को नहीं पहचान पाती और उसमें फंसकर अपनी जान गंवा बैठती है। इसी प्रकार पोंज़ी स्कीम के ठग लोगों को "नो रिस्क और कई गुना रिटर्न" का सपना रुपी आटा दिखाकर ललचाते हैं फिर उनकी पूँजी समेटकर भाग जाते हैं।

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पोंजी स्कीम की धोखाधड़ी -

पोंजी स्कीम में कुछ इस तरह का सब्जबाग दिखाया जाता है कि एक झोपड़े में रहने वाला भी कुछ ही महीनों में करोड़पति बन जाएगा। सुनियोजित ठगी के मॉडल पोंजी स्कीम को पिरामिड स्कीम, मल्टी लेवल मार्केटिंग या नेटवर्क मार्केटिंग सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है। जिसका मूल मंत्र "इजी मनी" का सपना दिखाकर लोगों को लूटना होता है।

   बाजार की तुलना में जरूरत से अधिक कमाने के लालच में कई छोटे व मध्यम दर्जे के लोग अपना पैसा इनकी योजना में निवेश कर देते हैं यह  सिलसिला चलता रहता है। 

   नए व्यक्ति का पैसा लेकर उसमें से कुछ हिस्सा पुराने व्यक्ति को दिया जाता है जिससे वह समझता है कि उसे अपने निवेश के एवज में बढ़िया रिटर्न मिल रहा है। वह इस योजना में और अधिक पैसा लगाने लगता है। 

  इससे बहुत ही कम समय में करोड़ों रूपये जमा होने लगते हैं लेकिन जब इस निवेश की श्रृंखला टूटती है तो अचानक ही सारी योजना बंद की स्थिति में आ जाती है तब इसके संचालक, इसे बंद घोषित कर गायब हो जाते हैं और लोगों को पैसा वापस मिलने की गुंजाइश खत्म हो जाती है. इन योजनाओं के चक्कर में फंसे लोग अपनी गाढ़ी कमाई से हाथ धो बैठते हैं। 

पोंजी स्कीम क्यों कहते हैं?      

आपके मन में यह प्रश्न घूम रहा होगा कि इसे पोंजी स्कीम क्यों कहते हैं?दरअसल इस स्कीम का जन्मदाता इटली का एक नागरिक "जियेन्नों गिवोवान्नी गुग्लिम्लों टोबाल्डो पोंजी" था, जिसे "चार्ल्स पोंजी" के नाम से जानते हैं।

   प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद सन 1919 में अमेरिका में कदम रखने वाले पोंजी ने एक स्कीम शुरू की। उसने 45 दिन में प्रत्येक निवेशक को 50 फीसदी तक रिटर्न देने का लालच दिया। उसकी बनाई कम्पनी  द सिक्युरिटीज एक्सचेंज में हजारों लोगों ने पैसा लगाया।

     कुछ दिनों बाद आखिरकार पोंजी की यह स्कीम छलावा साबित हुई और हजारों लोगों के लाखों डूब गए। इस तरह शुरुआत हुई पोंजी स्कीम की। पोंजी के बाद ठगों ने सपने दिखाकर लूटने के इस मॉडल को अपना लिया और थोड़े हेर फेर के साथ लोगों को ठगने या छलने का धंधा आज भी जारी है।
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पोंजी स्कीम  (ponzi scheme) से ठगी के तरीके -


पोंजी स्कीम को अलग अलग स्तर में चलाया जाता है इसमें स्थानीय स्तर से लेकर राज्य स्तर, किसानों के मध्य से लेकर ऑनलाइन स्कीम चलाकर पूरे देश के लिए भी इसे लांच किया जाता है। आइये इनमें से कुछ ठगी के तरीकों के बारे में जानते हैं -

1. स्थानीय स्तर पर -

पहले ये लोग किसी शहर के आउटर में किसी बिज़नेस काम्प्लेक्स में एक ऑफिस किराये पर लेते हैं। वहां ऑफिस का सेटअप बनाकर अपना धंधा शुरू कर देते हैं। विज्ञापन के जरिये लोकल एजेंटो की नियुक्ति की जाती है उन्हें तगड़े कमीशन का लालच दिया जाता है। इस लालच में फंसकर एजेंट अपने रिश्तेदारों की रकम वहां लगवाता है। 

  निवेशकों को बहुत थोड़े समय जैसे 2 या 3 साल में रकम डबल करके देने का वादा किया जाता है और साथ में प्रति माह 3% ब्याज अलग से देने की बात कही जाती है। 

   एजेंट के विश्वास दिलाने और मोटे रिटर्न की आशा में लोग इस ओर आकर्षित होते हैं। परन्तु उनके दिल में कुछ संदेह अभी भी बना होता है, इस कारण शुरू में ये लोग छोटी रकम लगाते हैं। विश्वास जमाने के लिए प्रारम्भिक महीनों में ब्याज या लोगों को मिलने वाली किश्तों का भुगतान भी कम्पनी द्वारा किया जाता है। इससे धीरे से लोगों का विश्वास जमने लगता है और वे बड़ी रकम लेकर इनके ऑफिस आने लगते हैं।  

     3% मासिक ब्याज पाता देखकर और 3 साल में रकम डबल होने का ऑफर सुनकर उनके रिश्तेदार भी अपनी जमा पूँजी लेकर यहां जुटने लगते हैं और ठग उनकी ही रकम से उन्हें ब्याज के पैसे चुकाते जाते हैं। कुछ ही महीनों में बड़ी रकम जमा हो जाती है तब तक कुछ लोगों के 3 साल वाली maturity डेट नजदीक आने लगती है। अब मौका देखकर ठग ऑफिस बंद करके निकल लेते हैं। 

     जब लोग उनके ऑफिस पहुंचते है तो वहां ताला लटका हुआ मिलता है अब इनके सामने अपना सिर धुनने के अलावा लोकल एजेंट को पकड़ने का रास्ता होता है। ये लोग एजेंट पर पैसा देने का दबाव बनाते हैं पर पैसा तो एजेंट के पास होता नहीं और न ही वह ठगों के ओरिजिनल पते से वाकिफ होता है। पुलिस में शिकायत होने पर वह भी इन्हीं एजेंटो पर दबाव बनाती है इसकी दुखद  परिणति कुछ एजेंटों की आत्महत्या के रूप में हुई है।

 अपनी जमा पूँजी लुट जाने के बाद निवेशकों की दुर्दशा का अंदाज़ सहज ही लगाया जा सकता है। इन्हें नींद की गोली खाने के बाद भी नींद नहीं आती। इनमें से अधिकतर मध्यम या निम्न वर्ग के होते हैं।
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 2. किसानों के लिए पोंजी स्कीम -

कभी कभी पोंजी स्कीम के ठग, लोगों से सीधे रकम न जमा करवाकर नए तरीके भी आजमाते हैं। देश में पोंजी स्कीम से ठगी का जाल इस कदर फैला कि छोटे-छोटे किसानों तक को इसने नहीं छोड़ा। 

  आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र या पंजाब में किसानों को एमु फार्मिंग के नाम पर  और मध्य तथा पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में बकरी पालन जैसी स्कीम के नाम पर लाखों की ठगी की गई है।

   छत्तीसगढ़ में किसानों को सफ़ेद मूसली के नाम पर फंसाया गया। इसके लिए किसानों को झांसा दिया गया कि हमारी कम्पनी के माध्यम से अपने खेत में सफ़ेद मूसली की खेती करके किसान प्रति एकड़ लाखों रूपये कमा सकते हैं। किसानों को सेट करने के लिए स्थानीय नेताओं और सरपंच आदि की मदद भी ली जाती है। 

  किसानों को बुकलेट के माध्यम से सफ़ेद मूसली की खेती के तरीके और फसल आने पर उसके लाभ के बारे में समझाया जाता है। उन्हें किसी फार्म में ले जाकर दिखाया भी जाता है जहां छोटी सी जगह में सफ़ेद मूसली लगी होती है। साथ ही फसल आने पर अच्छे दामों में खरीद की गॉरन्टी भी दी जाती है। 

    एक माहौल बना दिया जाता है जिससे बहुत से किसान मूसली की खेती के लिए तैयार हो जाते हैं। जब बीज खरीदने की बारी आती है तो ठगों की मुख्य भूमिका शुरू होती है। अब चूंकि ये किसानों के लिए नई फसल होती है इसलिए उन्हें इसके बीज आदि का कोई आईडिया नहीं होता और वे इन्हीं लोगों से बीज खरीदने को तैयार हो जाते हैं।

   पैसे कम पड़ने पर किसानों को बीज खरीदने के लिए बैंक से लोन भी निकलवा दिया जाता है। फिर ये ठग कई गुना कीमत पर इन्हें घटिया बीज टिका कर रफ़ूचक्कर हो जाते हैं।

 3. प्लांटेशन के नाम पर पोंजी स्कीम -

करीब 10-15 साल पहले की बात करें तो बहुत सी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां लोगों के बीच एक से बढ़कर एक लुभावने ऑफर लेकर आईं। इसमें निवेशकों को भारी भरकम रिटर्न के साथ सुनिश्चित उपहार जैसे मुफ्त में विदेश यात्राओं का भी ऑफर भी दिया गया। इनके प्लान में हॉली डे रिसॉर्ट बनाने से लेकर चाय बागान का स्वामित्व दिलाने जैसी लुभावनी योजनाएं शामिल थीं।

   इसी कड़ी में कुछ साल पहले सागौन प्लांटेशन के नाम पर पोंज़ी स्कीम चलाकर लोगों को बड़ी सफाई से लूटा गया है। एनबी प्लांटेशन उनमें से एक कम्पनी है। इसमें लोगो को ब्रोशर दिखाकर बताया गया कि सागौन के वृक्ष से कैसे 20 साल में वो करोड़पति बन सकते हैं। 

   इस कम्पनी ने भोपाल में अपना मुख्यालय बनाया और विभिन्न शहरों में अपने ऑफिस खोलकर काम शुरू कर दिया। लोगों से कहा गया कि कम्पनी उनके नाम से जमीन खरीदकर वहां सागौन के पेड़ लगाएगी। आप जितना अधिक पैसा कम्पनी में जमा करेंगे उतने ही अधिक सागौन के पेड़ की मालकियत आपको मिलेगी। 

  चित्रों के माध्यम से बताया गया कि इतने समय में आपका पेड़ इतना मोटा होगा जिससे इतने घन मीटर लकड़ी मिलेगी जिसकी मार्केट में कीमत लाखों रूपये होगी। इन पेड़ों की देखरेख के लिए विशेषज्ञों की सेवाएं भी कम्पनी लेगी। मोटे तौर पर पढ़े लिखे लोगों को भी यह स्कीम अच्छी लगी। कम्पनी के प्रवर्तक एक प्रसिद्ध अखबार से जुड़े हुए लोग थे। लोगों ने इसमें खूब पैसा लगाया। 

   कुछ साल बाद पता चला कि कम्पनी बंद कर दी गई  है और कोर्ट के आदेश से लोगों को उनका पैसा लौटाया जायेगा। पैसे लौटाने के नाम पर कम्पनी ने लोगों से कम्पनी द्वारा इशू किये गए सर्टिफिकेट वापिस ले लिए और कुछ लोगों को छोटी रकम के चेक भेजे। 

stack-of-money   बाद में कहा गया कि कम्पनी अब पैसे लौटाने की जगह निवेशकों को कम्पनी के शेयर देगी। अंततः कहीं कुछ नहीं मिला, निवेशक ठगे गये और कम्पनी लोगों के पैसे डकार कर बैठ गई। 

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4. ऑनलाइन पोंजी स्कीम -

कंप्यूटर और इंटरनेट के बढ़ते उपयोग को भांप कर स्पीक एशिया जैसी कंपनियों ने ऑनलाइन पोंजी स्कीम लांच की। नए सदस्य को इसमें सिर्फ एक सरल सा सर्वे फार्म भरने पर पैसे मिलने की बात कही गई। 

   इसमें मेंबर बनने के बाद आगे नए मेंबर बनाने पर कमीशन दिया जाता था जिससे कारण लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों को इससे जोड़ते चले गए। करोड़ों रूपये जमा करने के बाद कम्पनी की वेबसाइट बंद हो गई।  

   स्टाक गुरु और एन मार्ट जैसी कंपनियों की पोंजी स्कीमो का भी कुछ इसी तरह का  हाल रहा है। केंद्र सरकार द्वारा "Saradha ग्रुप स्कैंडल" जो अरबों रूपये का है, की जांच में कुछ सांसदों (MP) के नाम भी सामने आये हैं। 

   इसके बाद ठगी के शिकार लोग पुलिस थानों के चक्कर इस उम्मीद से लगाते रहते हैं आज नहीं तो कल जालसाज पकड़ा जाएगा और उनका मूलधन तो कम से कम मिल जाएगा। 

  परन्तु सच्चाई यह है कि यह ठगी का प्लान इतने सुनियोजित तरीके से बनाया गया होता है कि आरोपियों के पकड़े जाने के बाद भी लोगों का पैसा मिलना मुश्किल होता है।

 पोंजी स्कीम को कैसे पहचानें -

आम लोगों या निवेशकों के लिए पोंजी स्कीमों की पहचान करना ही इससे बचने का उपाय है। किसी भी योजना में निवेश से पहले सतर्कता और विवेक का इस्तेमाल करेंगे तो इन फर्जी स्कीमों की पहचान कर पाना मुश्किल नहीं होगा - 

A. हाई  रिटर्न -

यदि कोई स्कीम प्रचलित तौर पर मिलने वाले रिटर्न से अधिक देने का वादा कर रही है तो सतर्क हो जाएं, इसमें जालसाजी हो सकती है। 2 या 3 साल में रकम डबल कर देने के दावे इसी श्रेणी में आते हैं। सालाना 15%  से अधिक रिटर्न का दावा किया जाए तो समझिए की मामला संदिग्ध है।

B. रिटर्न की गॉरन्टी -

यदि कोई कहे कि आपका निवेश पूरी तरह सुरक्षित है, तो इसमें भी छलावे की गुंजाइश है। क्योंकि, किसी भी वित्तीय योजना को 100% फुल प्रूफ नहीं कहा जा सकता। शेयर मार्केट और म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश से भी ऐसी गॉरन्टी नहीं हो सकती। हाई रिटर्न और हाई रिस्क दोनों साथ साथ चलते हैं। 

C. पूरी तरह कानूनी होने का दावा -

 यदि कोई कंपनी निवेशकों को स्कीम के कानूनी होने का दावा बार-बार कर रही है तो इसमें फर्जीवाड़े की आशंका है। इन स्थितियों में पूरी जांच-पड़ताल करने के बाद ही निवेश की ओर कदम बढ़ाएं। जहां तक संभव हो लुभावनी स्कीमों से दूरी ही बना कर रखें। क्योंकि, लालच ही ठगी का मार्ग प्रशस्त करता है।

D. गैरपंजीकृत निवेश योजनाएं -

सरकार से बिना मान्यता प्राप्त नान बैंकिंग संस्थाएं या ऐसी योजनाएं जो रेगुलेटर (RBI अथवा SEBI) से पंजीकृत न हो, कभी भी उसमें निवेश न करें।जिस योजना में निवेश का सोच रहें हों उसकी जानकारी इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त करें।

   यह भी पता करें कि कंपनी को पैसे जमा करने का परमिशन है या नहीं? इसके लिए RBI और SEBI के वेब साइट पर जाकर कंपनी की पूरी जानकारी जरूर देखनी चाहिए। 

conclusion -


इस प्रकार की ठगी से बचने के लिए अपने लालच पर नियंत्रण रखने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। "दूसरे लोग लम्बा मुनाफा ले रहे हैं और मैं कहीं चूक न जाऊं" इस मनोवैज्ञानिक समस्या को समझकर ही ऐसी पोंज़ी स्कीम या चिट फण्ड कंपनियों से बचा जा सकता है।

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